हे हर तोहें निरदय जनु होही
हे हर तोहें निरदय जनु होही |
लख अपराध उपेखि नडाबिअ के प्रतिपालत मोही ||
मन छल नृपति होयब माहिमण्डल करब कनक मनि दाने |
मनक मनोरथ मनहि मगन भेल आन करैत भेल आने ||
एहि भवसागर पार कतहु नहि कोन विधि उतरब पारे |
कुदिवस नाव डुबाबए चहइछ करम कुटिल करूआरे ||
ह्रदय वेदन हम कतेक कहब तोहि दुर कर मन अभिमाने |
कतेक आस पास तोहि अएलंहु विद्यापति कवि भाने ||
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