विकट जटा चय
विकट जटा चय
किछु न लोकभय हे
उर फनिपति दिगवास || ध्रुo ||
कोन पथ भेटताह हे
आगे माइ जाइत उमत हमार ||
त्रिपुर दहन करू
छारें छाल भरू हे
बसहा चढ़ल वर बूढ़ ||
तीनि नयन हर
एक अनल बर हे
हीर सुरसरि जलधार ||
भनइ विद्यापति
गाउरि विकल मति हे
ओही उमताक उदेश ||
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