सभकें जे दोड़ी दोड़ी पुछ्थि विकल गौरि
सभकें जे दोड़ी दोड़ी पुछ्थि विकल गौरि
आहे, एहि देखल दिगम्बर रे की |
देखइत बुढ़ सन बसथि सभक मन
आहे लखइत पुरुष पुरन्दर रे की |
अपनें न अयल शिव घर नहि कौड़ी थिक
आहे गणपति अउरि पसारल रे की |
बसहा चढ़ल शिव फिरथि आनन्द वन
आहे घूमि-घूमि डमरू बजाबथि रे की |
भनइ विद्यापति सुनु गौरा पारवती
आहे इहो थिक त्रिभुवन नाथ रे की |
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