Aug 31, 2009

मोर भंगिया भोला कोन राखल बिलमाए

मोर भंगिया भोला कोन राखल बिलमाए ||

गौरि विकलमन पुछ्थि पथिक सों हरक उदेश कहु पाए |
जीवननाथ मोर कतए गेल छथि तें नहि भवन सोहाए ||

जखन देखथि मुख फेरथि कतहु नहि तकितहि रहथि सदाए |
से जे प्राणपति कतए गेल छति एकसरि देलन्हि नड़ाए ||

वसथि तपोवन हरलन्हि मोर मन सिंगी नाद बजाय |
हुनि लए हम जे कठिन व्रत साधल पथ हेरि नयन झझाए ||

भनहि विद्यापति सुनिअ महेशवरि चित रहु धैरज लाए |
देववती पति करत कृतार्थ पुरत मनोरथ आए ||

मोर निरधन भोला

मोर निरधन भोला |
अपने भिखारि बिलह नहि थोडा ||

फाड़ी कचोटा हर इसर बोलावे |
मगन जना सबे काटि पावे ||

सबे बोल हुनि गर जगत किसाने |
बूढ़ बड़द कुट काँख बोकाने |

भनइ विद्यापति पुछु हुनि दहु |
की लय पोसब दहु परिजन पुत बहू ||

यहि बिधि ब्याहन आयो

यहि बिधि ब्याहन आयो एहन बाउर जोगी |
टपर टपर कए बसहा आएल खटर खटर रुण्डमाल ||

भकर भकर शिव भाँग भकोचथि डमरू लेल कर लाय |
अरिपन मेटल पुरहर फोरल बर किमि चौमुख दीप ||

धिया ले मनाइनि मण्डप वइसलि गाबिए जुनी सखि गीत |
भनइ विद्यापति सुनु ए मनाइनि ई थिक त्रिभुवन ईस ||

रूसलि भवानी न मानए बोध

रूसलि भवानी न मानए बोध |
आजे छ्मह गौरि मोरे अनुरोध ||

जत किछु मांग तोंह अछए भंडार |
पहिलहि देब गिम फनि मनिआर ||

भूखलाँ भाँग देअउओ बिषे सानि |
चढ़अक बसहा देबऊ पलानि ||

भनइ विद्यापति पुनु पुनु सेव
चंदल देविपति वैदनाथ देव ||

रुसि चललि गौरि तेजि महेश

रुसि चललि गौरि तेजि महेश |
कर धय कार्तिक कोर गणेश ||

तोहैं गौरि जनि नैहर जाह |
त्रिशूल बाघम्बर बेचि बरु खाह ||

त्रिशूल बाघम्बर रह वर पाय |
हम दुःख काटब नैहर जाय ||

देखि अयलहूँ गौरि नैहर तोर |
सभहुक परिहन बाकल डोर ||

जनि उकटिअ सिव नैहर मोर |
नाड़टसं भाल बाकल डोर ||

मोर वचने तेजि चललिह रुसि |
नैहर पोसल हमर घर मुस ||

भनहिं विद्यापति सुनिय महेस |
नीलकंठ भय हरिय कलेस ||

वर बौराह उमाके

वर बौराह उमाके
सोचहिं नारि निहारि ||
फनि मनि मौलि विराजित
सिर सुरसरि बहु धार ||
भाल विसाल सुधाकर
कर त्रिसुल त्रिपुरारि ||

बाहन बसहा दिगम्बर
परिजन भूत बेताल |
आक धथुर विष भोजन
विजया प्रान अधार |
कह ऋषिरानि रजासौ
कन्या रहलि कुमारि |
दुल्हिन जोग दूल्हा नहि
दुलहिनि बडि सुकुमारि ||

कह जगजननी जननीसौं
चिंता छोरु हमारि |
जतय जाएब ततए दुःख सुख
लिखल मेटल नहि जाय ||
शिवशंकर वर ईशवर
नाथ चरन चित लाय |
गिरिजा नहिमँ आनन्दित
विद्यापति कवी गाय ||

विकट जटा चय

विकट जटा चय
किछु न लोकभय हे
उर फनिपति दिगवास || ध्रुo ||

कोन पथ भेटताह हे
आगे माइ जाइत उमत हमार ||

त्रिपुर दहन करू
छारें छाल भरू हे
बसहा चढ़ल वर बूढ़ ||

तीनि नयन हर
एक अनल बर हे
हीर सुरसरि जलधार ||

भनइ विद्यापति
गाउरि विकल मति हे
ओही उमताक उदेश ||

विदिता देवी विदिता हो

विदिता देवी विदिता हो
अविरल - केस - सोहन्ती
एकाएक सहस को धारिनि
जनि - रंगापुर नटी

कउनजलरूप तुअ काली कहिअए,
गंगा कहिअए पानी
ब्रह्मा घर ब्रह्मानी कहिअए
हर घर कहिअए गौरी
नारायण-घर कमला कहिअए
के जान उतपति तोरी

विद्यापति कविवर एहो गाओल
जाचक जनके गती
हासिनिदेइ-पति गरुड़नारायण
देवसिंह नरपती

सभकें जे दोड़ी दोड़ी पुछ्थि विकल गौरि

सभकें जे दोड़ी दोड़ी पुछ्थि विकल गौरि
आहे, एहि देखल दिगम्बर रे की |

देखइत बुढ़ सन बसथि सभक मन
आहे लखइत पुरुष पुरन्दर रे की |

अपनें न अयल शिव घर नहि कौड़ी थिक
आहे गणपति अउरि पसारल रे की |

बसहा चढ़ल शिव फिरथि आनन्द वन
आहे घूमि-घूमि डमरू बजाबथि रे की |

भनइ विद्यापति सुनु गौरा पारवती
आहे इहो थिक त्रिभुवन नाथ रे की |

शिव हे भलि अनुगति फल भेला

शिव हे भलि अनुगति फल भेला |
एतए संगति अति
परतर कञोन गति
मनहि मनोरथ रहला ||

तोहें होएब परसन
पाओब अमूल धन
जनम खपलि तें आसे |
जमहु संकट पुनु
उपेखि हलह जनु
सेओलाहूँ बड़े परआसे ||

नयन स्रवर गेले
तनु अवसर भेले
जदि तोहें होयब परसने |
कि करब ततिखने
हअ गअ मनि धने
झाँखइते व्याकुल मने ||

हरि कमलासन
ईद चाँद गन
सबे परिहरि हमे देवा |
भगतबछल हर
सुनिअ महेसर
इ जानि कयल तुअ सेवा ||

विद्यापति भन
पुरह हमर मन
जनु होअ जम अवसादे |
हरह हमर दुःख
तथुहू तोहर सुख
सबे होअ तुअ परसादे ||

शिव हे

शिव हे

सेवए अएलाहूँ सुख लागी |
विषम नयन अनुखन बर आगी ||

बसहा परायल आगे |
पइसि पातळ रहल गए नागे ||

ससि उठि चलल अकासे |
गौरि चललि गिरिराजक पासे ||

उचित कहए नहीं जाइ |
उमट अराधब कॉउने उपाइ

विद्यापति कवी सेवा
देथु अभय वर शंकर देवा ||

शिव हो उतरब पार कओन विधि

शिव हो उतरब पार कओन विधि

लोढ़ब कुसुम, तोड़ब बेलपात
पूजब सदाशिव गौरि़क साथ
बसहा चढ़ल शिव फिरए मसान
भडिया जरठ वेदन नहि जान
जप टाप नहि कएलहु दान
बिति गेल तिनपन करइत आन
भनइ विद्यापति सुनह महेश
निरधन जानि मोर हरह कलेस |

सुनिऐन्हि हर बड सुन्दर

सुनिऐन्हि हर बड सुन्दर,
आगे, देखऐन्हि बिभूति भयंकर |
सुनिऐन्हि हर अओंतहि रथपर,
आगे, देखिऐन्हि बूढ़ बलद पर ||

सुनिऐन्हि पाटपटम्बर,
आगे, देखऐन्हि फटले बघम्बर |
सुनिऐन्हि गरा मोति माललय,
आगे देखऐन्हि रुद्रक हारलय ||

भनहि विद्यापति गऔल,
आगे गौरी उचित वर पाओल ||

सुनिय डमरू धुनी

सुनिय डमरू धुनी, शिव शिव पुनि पुनि,
आब एत करू बिसराम |

पूजा उपचार लिय, सत्वर गंगाके दिय,
कही देव हमरो प्रणाम|

करतीहि कृपा गंगा सकल कलुख भंगा,
आब जीब परसन भेल |

एतै औतीह सुरधुनी, अपन किन्ड़कर गुनी,
सब पातक दूर गेल |

थाकि गेलि जनी जाति, बेटा बेटी पोता नाती,
कामति कहार संग साथी |

मोर हेतु आउ एत, धन्यवाद लोक देत,
सभ जन हरषि नहाथी |

बहन कवि विद्यापति, दिअ देबि दिव्य गति,
पशुपतिपुर पहुचाय |

गौरि संग देख शिव, कि सुख पाओत जीव,
से आब कहल न जाय ||१||

गे माइ

हम नहि आज रहब एहि आँगन जों बुढ़ होयत जमाए | गे माइ |
एक तं बैरी भेल विधि-विधाता, दोसर धिआकेर बाप |

तेसर बैरी भेल नारद बाभन जे बुढ़ आनल जमाए | गे माइ |
पहिलुक बाजन डमरू तोड़ब, दोसरे तोड़ब रुण्डमाल |

बड़द हाँकि बरिआत बैलाएब, धिया लए जाएब पड़ाए | गे माइ |
धोती, लोटा, पतरा, पोथी सेहो सब लेबंहि छिनाए |

जों किछु बजता नारद बाभन दाढ़ी धए घिसिआएब | गे माइ |
भनहि विद्यापति सुनु हे मनाइनि दिढ़ करू अपन गेआन |

सुभ सुभ कए सिरी गौरि बिआहिअ गौरि-हर एक समान | गे माइ |

हम सौं रुसल महेशे

हम सौं रुसल महेशे |
गौरि विकल मन करथि उदेशे ||

पुछिय पंथुक जन तोही |
पथ देखल कंहू बुबटोही ||

अंगमे विभूति अनुपे |
कतेक कहब हुनि जोगिक रूपे ||

विद्यापति भन ताही |
गौरि हर लय भेलि बताही ||

हे मनाइन देखह जमाय

हे मनाइन देखह जमाय
सिवक माथ फुटल जटा
आगे माइ, ताहि उपर नाग घटा ||

जटा देल अकुसी लगाय
आगे माइ, ताहि उपर नाग घटा ||

झिकितहि सुरसरि गोल बहराय
वेदी देल लवा छिडिआय
आगे माइ, ताहि उपर नाग घटा ||

भूकल वासुकि बिछि बिछि खाय
बट्टा भरि घोरल कसाय
आगे माइ, ताहि उपर नाग घटा ||

उमत महादेव भसम लगाय
गौरि सहित वर कोबार जाय
आगे माइ, ताहि उपर नाग घटा ||
गे माइ................................

Aug 30, 2009

हर जनि बिसरब मो ममिता

हर जनि बिसरब मो ममिता
हर नर अधम परम पतिता
तुअ सन अधम उधार न दोसर
हम सन जग नहि पतिता

जम के द्वार जबाब कओन देब
जखन बुझात निजगुन कर बतिया
जब जम किंकर कोपि पठाएत
तखन के होत धरहरिया

भनहि विद्यापति सुकवि पुनितमति
संकर विपरीत बानी
असरन सरन चरन सिर नाओल
दया करू दिअ सुलपानी |

हे हर तोहें निरदय जनु होही

हे हर तोहें निरदय जनु होही |
लख अपराध उपेखि नडाबिअ के प्रतिपालत मोही ||

मन छल नृपति होयब माहिमण्डल करब कनक मनि दाने |

मनक मनोरथ मनहि मगन भेल आन करैत भेल आने ||

एहि भवसागर पार कतहु नहि कोन विधि उतरब पारे |

कुदिवस नाव डुबाबए चहइछ करम कुटिल करूआरे ||

ह्रदय वेदन हम कतेक कहब तोहि दुर कर मन अभिमाने |

कतेक आस पास तोहि अएलंहु विद्यापति कवि भाने ||

हे हर जानि भेल गुरु देव द्वार

हे हर जानि भेल गुरु देव द्वार
आब हम करब कोन परकार |

अशरण
शरण धयल हम तोहि
अबला जानि बिसरलह मोहि |

भाँग
खाय शिव सुतलाह भोर
तें अति दुरगति होइछ मोर |

बिनु
धन धरम कयल नहि जाय
ताहि करब हम कोन उपाय |

भनहि
विद्यापति सुनु शूलपानि
दिअओ अभयवर सहित भवानि |

|| ज़िन्दगी कहती है ज़िन्दगी
से के अगर साथ रहा ज़िन्दगी का
तो साथ रहेगी ज़िन्दगी के ||
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