हर जनि बिसरब मो ममिता
हर जनि बिसरब मो ममिता
हर नर अधम परम पतिता
तुअ सन अधम उधार न दोसर
हम सन जग नहि पतिता
जम के द्वार जबाब कओन देब
जखन बुझात निजगुन कर बतिया
जब जम किंकर कोपि पठाएत
तखन के होत धरहरिया
भनहि विद्यापति सुकवि पुनितमति
संकर विपरीत बानी
असरन सरन चरन सिर नाओल
दया करू दिअ सुलपानी |
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