Oct 10, 2009

कखन हरब दुःख मोर हे भोला नाथ

कखन हरब दुःख मोर हे भोला नाथ |
दुखहि जनम भेल दुखहि गमएब
सुख सपनेहु नहि भेल, हे भोलानाथ ||
आछत चानन अबर गंगाजल
बेलपात तोहि देब, हे भोलानाथ |
यहि भवसागर थाह कतहु नहि
भैरव धरु कर आए, हे भोलानाथ
भन विद्यापति मोर भोलानाथ गति
देहु अभय वर मोहि हे भोलानाथ ||

करय चलल महुअक हर हे कोबर घर

करय चलल महुअक हर हे कोबर घर,
माइ हे, खीर खाँड़ नहि खाथि, के भाँग भकोसल |
सासु जे महुअक राँधल से सेराओल,
माइ हे, सरहोजि मुह मध ढार, कि जोग जनाओल
सासु सरहोजि बैसलि घेरि छवि हेरि हेरि,
माइ हे, सुखसं कर परिहास, कि हरसं बेरि बेरि |
भनहि वियापति गाओ़ल, सुख पाओल,
गौरिक पुरल भाग, मिलल वर शंकर ||

Sep 30, 2009

जय जय भगवती

जय जय भगवती जय महमाया |
त्रिपुर सुन्दरि देवि करू दाया || आहेमता ||
दालिम कुसुम सम अ तनु छवि |
तखने उदित भेल जनि रबी ||
धनुसर पास अंकुस हाथ |
तेतिस कोटि देव नाव माथ ||
चंगिम उपमा केओ पाव |
काम रमनि दासि पद पाव ||

जय जय भैरवि असुर-भयाउनि

जय जय भैरवि असुर-भयाउनि
पशुपति - भामिनी माया |
सहज सुमति वर दिअओं गोसाउनि
अनुगत गति तुअ पाया ||

वासर रैन शवासन शोभित
चरण चन्द्रमणि चूडा |
कतओक दैत्य मारि मुख मेलल
कतओं उगिलि कैल कूड़ा ||

सामर वरन नयन अनुरंजित
जलद जोग फूल कोका |
कट कट विकट ओठ फुट पाँड़रि
लिधुर फेन उठ फोका ||

घन घन घनन नुपुर कत बाजय
हन हन कर तुअ काता |
विद्यापति कवि तुअ पद सेवक
पुत्र बिसरि जुनी माता ||

Sep 25, 2009

जय जय भगवती

जय जय भगवती भीमा भवानी |
चारि वेदें अवतरु ब्रह्मानी ||
हरी हर ब्रह्मा पुछइते भमे |
एकओ न जान तुअ पद मरमे ||
भनइ विद्यापति राइ मुकुटमनि |
जीबओ रूपनारायण नृप-धरनि ||

जोगिया मन भावइ हे मनाइनि

जोगिया मन भावइ हे मनाइनि |
आएल बसहा चढि विभूति लगाए हे |
मन मोर हरलनि डमरू बजाए हे ||
सुन्दर गात अजरापति से नाहे |
चित सों नइ छूटथि जानथि किछु टोना है ||
तीनि नयन एक अगनिक ज्वाला हे |
भाल तिलक चन फटिकक माला हे ||
ओह सिंहेस्वरनाथ थिका मोर पति हे |
विद्यापति कर मोर गौरिहर गति हे ||

भल हर भल हरि भल तुअ कला

भल हर भल हरि भल तुअ कला |
खन पितबसन खनहि बघछाला ||
खन पंचानन खन भुज चारि |
खन संकर खन देव मुरारि ||
खन गोकुल भए चराइअ गाए |
खन भिखि मांगिअ डमरू बजाए ||
खन गोविन्द भए लिअ महादान |
खनहि भसम भारू कांख बोकान ||
भनइ विद्यापति बिपरित बानि |
ओ नारायण ओ सुलपानि ||

मंगले बिलहिअ सिंदूर पिठारे

मंगले बिलहिअ सिंदूर पिठारे |
तोहें भलि सोम्पलि साजि भरि छारे ||
चलह चलह हर पलटि दिगंबर |
हमार गोसाउनि तोहें न जोग वर ||
हरहु चाहि गुरु गउरवे गोरी |
की करब त जयमाल तोरी ||
नअने निहाराब सम्भ्रम लागी |
हिमगिरि धिअ सहब कइसे आगी ||
भाल बरइ नयनानल रासी |
झरकत मउंल डाढति पट्वासी ||
बड़े सुखें सासू चूमओबह मथा |

Sep 24, 2009

भंगिया हे भिखारी सोचत मैना

भंगिया हे भिखारी सोचत मैना
एहन रतन धिया तनिक एहन पिया
किए लिलाट लिखल विधना |
एहन गौरी कोना तपोवन जैती
नहि छनि सासु ननदि भगिना |
की हम बिगाड़ल नारद मुनिके
वर जोहि लैला छिया केहना |
भनइ विद्यापति सुनु हे मनाइनि
ई शिव थिक भुवन दानी ना |

बुढ़हु बएस हर बेसन न छड़ले

बुढ़हु बएस हर बेसन न छड़ले, की फल बसह धबाइ |
भाग भेल सिव, चोट न लगले, के जान की होइत आइ |
बसह पड़ाएल, के जान कतय गेल, हाड़-माल की भेल |
फूटी गेल डमरू, भसम छिडिआयल, अपथे सम्पति दूर गेल |
हमर हटल सिव तोहहि न मनाह अपना हठ बेबहारे |
सगरो जगत सबहु काँ सुनिअ घरनिक बोल नहि टारे |
भनइ विद्यापति सुनह महेसर इ जानि अयलाहु तुअ पासे |
तोहरा लग सिव बिघिन बिनासब आनक कोन तरासे |


पीसल भाँग रहल एहि गती

पीसल भाँग रहल एहि गती |
की लए मनाएब उमता जती ||
आन दिन निकहि छलाह मोर पती |
आइ बढाए देल कओन उदमती ||
आनक नीक अपन हो छती |
ठामें एक ठेसता पड़त विपती ||
भनहि विद्यापति सुनु हे सती |
ई थिक बाउर त्रिभुवनपति ||

बुढ़बा हे रंग रसिया

बुढ़बा हे रंग रसिया | जतय गौरी देखु ततय बिहुसिया |
बुढारी वयस हरकें बालक भेल | नहिं घर उबटन नहिं घर तेल |
मग्निक साड़ी देलन्हि ओछाय | चन सूर्य देल देहरि बैसाय |
भनहि विद्यापति सुनिय महेसिया | हरके चरित्र देखि हंसथी परोसिया |

पाहुन आएल भावनी

पाहुन आएल भावनी
बाघ छल बइसए दिअ आनी ||
बसह चढ़ल बुढ़ आबे
धुथुर गजाए भोजन हुनि भाबे ||
भसम विलेपित अंगे
जटा वसथि सिर सुरसिर गंगे |
हाड़माल फणीमाल सोभे
डंबरू बजाव हर जुवतिक लोभे ||
विद्यापति कवी भाने
ओ नहि बुढ़बा जगत-किसाने ||

मांगि-चांगि लयलाह

मांगि-चांगि लयलाह माइ हे तामा दुइ मिसिआ |
एक चरित्र देखि हँसय परोसिया ||
भनहि विद्यापति सुनिय भवानी |
एहन पाहुन माइ हे नित दिन आनी ||

बाँधय विकट जटा

बाँधय विकट जटा |
तथिहुं चंदिन फोटा ||
कत जग सहस वयस नहि गेला |
उमत महादेव समत न भेला ||
मौलि मेलिए छार |
सहज न तेजए पार ||
सुकवि विद्यापति गाऊ |
जिवओ सिवसिंह राऊ ||

बेरि बेरि अरे सिव

बेरि बेरि अरे सिव
मोए तोहि बोलाबे
किरिसी करिअ मन लाए |
बिनु सरमे रहिअ
भिखिए पए मांगिअ
गुण गउरव दूर जाए ||
निरधन जन बोलि
सबे उपहासए
नहि आदर अनुकम्पा
तोहें सिव पाओल
आक धुथुर फूल
हरि पाओल फूल चम्पा ||
खटड़ काटि हर
हर बन्धाबिअ
तिसुल तोड़ीअ करू फारे |
बसह धुरन्धर
लए हर जोतिअ
पटिअ सुरसरि धारे ||
भनइ विद्यापति
सुनह महेसर
इ जानि कएल तुअ सेवा |
एतए जे बरु होअ
से बरु होअओ
ओतए सरन मोहि देबा ||

Sep 16, 2009

पाहुन नंदि भवानी

पाहुन नंदि भवानी |
आज पाहुन नंदि भवानी ||
माइ हे बैसक देलन्हि बघम्बर आनी |
आज पाहुन नंदि भवानी ||
घर नहि सम्पति घृत नहिं गोरस |
पाहुन आनल माइ हे कौन भरोस ||
हर माला लय धरथि ध्यान |
पाहुन जमय माइ हे पहिले साँझ ||

Sep 15, 2009

परतह पूछ मोहि बाढ़लि भवानी

परतह पूछ मोहि बाढ़लि भवानी |
कतिएक भेलि, देखए देह आनी ||
भीखि बेआज मोर आब |
मनमोहन जोगिआ भाल गाब ||
ए माइ (ए माइ) अजगुत लागु |
सूतलि गौरि जोगिआ देखि जागु ||
जोहि जोगिआ देखि दूरहि पड़ाइ |
तोहि जोगिआ कोर गौरि खेलाइ ||
भनइ विद्यापति मन्दाइनि सुनु |
इ जोगिआ बर होयत पुनु-पुनु ||

प्रथमहि शंकर सासुर गेला

प्रथमहि शंकर सासुर गेला
बिनु परिचय उपहास पड़ला
पुछिओ न पुछ्लके बैसलाह जहाँ
निरधन आदर के कर कहाँ ||
हेमगिर मंडप कौतुक वसी
हेरि हँसल सबे बढ़ तपसी ||
से सुनी गौरि रहलि सिर नाए
के कहत माँ के तोहर जमाय ||
साँप शारीर काख बोकाने
प्रकृति औषध केदहु जाने ||
भनइ विद्यापति सहज कहू
आडम्बरे आदर हो सबतहू ||

पंचवदन हर भसमे धवला

पंचवदन हर भसमे धवला |
तीनि नयन एक बरए अनला || ध्रुo ||
धुखें बोलय भवानी |
जगत भिकारी मिलल हमे सामी ||
विषधर भूषण दिग परिधान ||
बिनु वितें ईसर उगना ||
भनइ विद्यापति सुनह भवानी |
हर नहि निरधन जगतक सामी ||

पंचानन पुर मथन भयंकर

पंचानन पुर मथन भयंकर, शंकर नाम कओने धरिआ |
तिनी नयन हर एक हुताशन, न जान कओने कुल अवतरिआ ||
माय न बाप सांप संगे खेलय, मेलय भसम दिगन्त भरी |
मनमथ मारि नारि आलिंगए, उमत बुझाओव् कौने परी ||
पावनि गांग मथा जदि थोवहि, गोवहि काइ जटा विघनी |
संसय तोरि जे गोरि बुझावय, इथि अनुचित अनुचित अपनी ||
भनइ विद्यापति सुनह मदाइनि, कौने बुझाऔत जगत गुरु |
राजा शिवसिंह रूपनारयण सकल याचक-जान-कलपतरु ||

Sep 11, 2009

सिव हो नैहर आब हम जायब

नैहर आब हम जायब सदाशिव | नैहर आब ||
पडिबा तिथि हम जात्रा कयकं, दुतीय गमन करायब ||
सिव हो नैहर आब हम जायब, सदासिव नैहर आब ||
तृतीया में हम पथहिं बितायब
चौठिमे काज़र लगायब
सिव हो नैहर आब हम जायब | सदाशिव नैहर आब ||

पँचमि चन्दन अंग लगायब
षष्ठी वेळ तरु जायब
सिव हो नैहर आब हम जायब, सदाशिव नैहर आब ||
नवपत्री संग सप्तमी प्रातमे
भक्तक घर हम आयब
सिव हो नैहर आब हम जायब, सदासिव नैहर आब ||

अष्टमी दिन महा पूजा निसि बलि
लय लय भत्तु जगायब
सिव हो नैहर आब हम जायब | सदाशिव नैहर आब |
नवमी में तिरसुलक पूजा
बहु विधि बलि चढ़वाएब
सिव हो नैहर आब हम जायब | सदाशिव नैहर आब ||

नवो निधि सेवक के दय क
दसमी कलस उठायब,
सिव हो नैहर आब हम जायब | सदाशिव नैहर आब ||
भनइ विद्यापति-जननी कहल सिव,
फेरि आपण गृह आए़ब
सिव हो नैहर आब हम जायब | सदाशिव नैहर आब ||

Sep 10, 2009

नाड़ट जन्मभिखारी

नाड़ट जन्मभिखारी, वर के कर एहन |
जकरो घर दुइ चारि कुमारि, सेहो वर करए विचारी |
एहन उमतवर के जोहि आयल, हम घर एक दुलारि |
भोजन भाँग विभूति लगाबथि, परिजन भूत मसान |
जखन गौरी सौं भीखि मंगओंता, हरता धियाक गेयान |
कुल परिवार एको नहि थिकइनि, घर सम्पति नहि माय |
जखन गौरि मोरि सासुर जैतहि, बैसति ककर लग जाय |
भनइ विद्यापति सुनिय मनाइन, इहो थिक त्रिभुवन नाथ |
हिनक दोष रोष जनु मानिय, हिनि सौं होयब सनाथ ||


सागर सम दुःख भार हे
आबहु करिअ प्रतिकार हे |
भनइ विद्यापति भन हे
संकट करिअ तरान हे |

Sep 9, 2009

दोला तर

दोला तर नबइते ससि खसि पडू
भाघछालं गेल छिडिआइ |
तेहि अमिउ रसें मृगरिपु जिबि उठु
भागें मोउ अएलांहू पडाइ ||
दोसर विधि पडिचान चढि बइसलाहे
जखने दिगम्बर आइ रे |
लाजक लेलि गोरि नहि आबए
सखि सबे गेलि पडाइ ||
माइ हे माड़ब मोउ नहि जएबे
जहाँ बस उमत जमाइ ||
पएर धोअए खने दूध पिउल फ़नी
हर लागल तसु चोरी |
सबे सबतहु करताल बजाबए
मधुर हांसें हँसू गोरी ||
सासुहि संकरक वदन उन्गारल
आँचर छान्दल ग्रिमपासे
देखि गिरी भाने कुच चढ़लाहे ||

Sep 8, 2009

तोहि कऔने

तोहि कऔने बुधि देल हे उमता |
ललिमा धाम तेजि बसह मसाने
अमिउ न पिबह करह बिसपाने |
चानन नहि हित विभूति-भूसने
मनि न धरह फ़नि कउने भूसने |
हय गज रथ तेजि बसह पलाने
पलंग न सुतह भूमि-सयाने |
भनइ विद्यापति विपरित काजे
अपने भिखारि सेवक दिअ राजे |

तोहें प्रभु

तोहें प्रभु त्रिभुवन-नाथ हे
हम निरदिस अनाथ हे |
करम धरम तप हीन हे
पड़लहूँ पाप-अधीन हे |
बेड़ भासल मझधार हे
भैरव धरु करुआर हे |

Sep 6, 2009

आगे माइ

आगे माइ, सोने-रुपें छारथि आनक पुतकें गारा देथि मनिमय माल |
अपना पुत लय किछु नहि जूड़नि अनका लय जंजाल |
आगे माइ, भनइ विद्यापति सुनिअ गौरीदेवि दिढ़ करू अपुन गेआन |
इ हर थिक त्रिभुवनपति दानी जग भरि के नहि जान

Sep 5, 2009

डाली कनक पसारल

डाली कनक पसारल
नयनयोग बेसाहल |
नैना कोना आइलि
सकल योग सभ लाइलि ||
हेमत आनल वर पसुपती
एको ने बाजथि दृढमति ||
सुभ सुभ कय सभ भाखीअ
गौरी बसि हर कें राखिअ ||
भनहि विद्यापति गाओल
जोगनिक अंत नहीं पाओल ||

Sep 4, 2009

जोगिया भँगवा

जोगिया भँगवा खाइत भेल रंगिया
भोला बोड़हवा ||

सबके औढ़ाबे भोला साल दुसलबा
आप ओढ़य मृगछ्लबा ||

सबके खिलावे भोला पॉँच पकवनमा
आप खाय भाँग धतुरबा ||

कोई चढ़ाबे बेलपात ||
जोगिन भुतिन सिव के संपतिया

भेरो बजाबे मिरदंगिया |
भनइ विद्यापति जै जै संकर
पारबती गौरी संगिया ||

Sep 3, 2009

आगे माइ

आगे माइ जोगिआ हमार जगत सुखदायक दुःख ककरहु नहीं देथि |

एहि जोगिआकें भंग पिया धतूर खोआ धन लेथि |

आगे माइ, कातिक गनपति दुइज़न बालक जग भरि के नहि जान |

तनिक नहि किछु अभरन थिकइन रति एक सों नहि कान |

Sep 2, 2009

माटी भलि

माटी भलि जोहि कहू आनलि बानी |
शम्भू अराधय चलली भवानी ||

आक धुथुर फूल दय मोयं जोही |
जगत जनमि दर छाडल मोही ||

जे किंकर मोर कि करत अंगे |
रह अपराधी बलिया संगे ||

जे सबे कयल हर सबे मोर दोसे |
से सबे कयल हर तोहरि भरोसे ||

भनइ विद्यापति शंकर सुनु |
अन्तकाल मोहि बिसरह जुनी ||

Sep 1, 2009

मोरा बउरा देखल केहु कतहु जात

मोरा बउरा देखल केहु कतहु जात
बसहा चढ़ल विष-पान खात ||

जाखि निरार मुह चुअइ लार
पथके चलत बौरा विसम्भार ||

बाट जाइते केहु हलब ठेली
आब ओहि बौरे विनु मजे अकेलि ||

हाथ डमरू कर लौआ साथ
जोत जुगुति गिम भरल माथ ||

अरगज चढाय अठहु अंग
सिर सुरसरि जटा बोलइ गंगा ||

Aug 31, 2009

मोर भंगिया भोला कोन राखल बिलमाए

मोर भंगिया भोला कोन राखल बिलमाए ||

गौरि विकलमन पुछ्थि पथिक सों हरक उदेश कहु पाए |
जीवननाथ मोर कतए गेल छथि तें नहि भवन सोहाए ||

जखन देखथि मुख फेरथि कतहु नहि तकितहि रहथि सदाए |
से जे प्राणपति कतए गेल छति एकसरि देलन्हि नड़ाए ||

वसथि तपोवन हरलन्हि मोर मन सिंगी नाद बजाय |
हुनि लए हम जे कठिन व्रत साधल पथ हेरि नयन झझाए ||

भनहि विद्यापति सुनिअ महेशवरि चित रहु धैरज लाए |
देववती पति करत कृतार्थ पुरत मनोरथ आए ||

मोर निरधन भोला

मोर निरधन भोला |
अपने भिखारि बिलह नहि थोडा ||

फाड़ी कचोटा हर इसर बोलावे |
मगन जना सबे काटि पावे ||

सबे बोल हुनि गर जगत किसाने |
बूढ़ बड़द कुट काँख बोकाने |

भनइ विद्यापति पुछु हुनि दहु |
की लय पोसब दहु परिजन पुत बहू ||

यहि बिधि ब्याहन आयो

यहि बिधि ब्याहन आयो एहन बाउर जोगी |
टपर टपर कए बसहा आएल खटर खटर रुण्डमाल ||

भकर भकर शिव भाँग भकोचथि डमरू लेल कर लाय |
अरिपन मेटल पुरहर फोरल बर किमि चौमुख दीप ||

धिया ले मनाइनि मण्डप वइसलि गाबिए जुनी सखि गीत |
भनइ विद्यापति सुनु ए मनाइनि ई थिक त्रिभुवन ईस ||

रूसलि भवानी न मानए बोध

रूसलि भवानी न मानए बोध |
आजे छ्मह गौरि मोरे अनुरोध ||

जत किछु मांग तोंह अछए भंडार |
पहिलहि देब गिम फनि मनिआर ||

भूखलाँ भाँग देअउओ बिषे सानि |
चढ़अक बसहा देबऊ पलानि ||

भनइ विद्यापति पुनु पुनु सेव
चंदल देविपति वैदनाथ देव ||

रुसि चललि गौरि तेजि महेश

रुसि चललि गौरि तेजि महेश |
कर धय कार्तिक कोर गणेश ||

तोहैं गौरि जनि नैहर जाह |
त्रिशूल बाघम्बर बेचि बरु खाह ||

त्रिशूल बाघम्बर रह वर पाय |
हम दुःख काटब नैहर जाय ||

देखि अयलहूँ गौरि नैहर तोर |
सभहुक परिहन बाकल डोर ||

जनि उकटिअ सिव नैहर मोर |
नाड़टसं भाल बाकल डोर ||

मोर वचने तेजि चललिह रुसि |
नैहर पोसल हमर घर मुस ||

भनहिं विद्यापति सुनिय महेस |
नीलकंठ भय हरिय कलेस ||

वर बौराह उमाके

वर बौराह उमाके
सोचहिं नारि निहारि ||
फनि मनि मौलि विराजित
सिर सुरसरि बहु धार ||
भाल विसाल सुधाकर
कर त्रिसुल त्रिपुरारि ||

बाहन बसहा दिगम्बर
परिजन भूत बेताल |
आक धथुर विष भोजन
विजया प्रान अधार |
कह ऋषिरानि रजासौ
कन्या रहलि कुमारि |
दुल्हिन जोग दूल्हा नहि
दुलहिनि बडि सुकुमारि ||

कह जगजननी जननीसौं
चिंता छोरु हमारि |
जतय जाएब ततए दुःख सुख
लिखल मेटल नहि जाय ||
शिवशंकर वर ईशवर
नाथ चरन चित लाय |
गिरिजा नहिमँ आनन्दित
विद्यापति कवी गाय ||

विकट जटा चय

विकट जटा चय
किछु न लोकभय हे
उर फनिपति दिगवास || ध्रुo ||

कोन पथ भेटताह हे
आगे माइ जाइत उमत हमार ||

त्रिपुर दहन करू
छारें छाल भरू हे
बसहा चढ़ल वर बूढ़ ||

तीनि नयन हर
एक अनल बर हे
हीर सुरसरि जलधार ||

भनइ विद्यापति
गाउरि विकल मति हे
ओही उमताक उदेश ||

विदिता देवी विदिता हो

विदिता देवी विदिता हो
अविरल - केस - सोहन्ती
एकाएक सहस को धारिनि
जनि - रंगापुर नटी

कउनजलरूप तुअ काली कहिअए,
गंगा कहिअए पानी
ब्रह्मा घर ब्रह्मानी कहिअए
हर घर कहिअए गौरी
नारायण-घर कमला कहिअए
के जान उतपति तोरी

विद्यापति कविवर एहो गाओल
जाचक जनके गती
हासिनिदेइ-पति गरुड़नारायण
देवसिंह नरपती

सभकें जे दोड़ी दोड़ी पुछ्थि विकल गौरि

सभकें जे दोड़ी दोड़ी पुछ्थि विकल गौरि
आहे, एहि देखल दिगम्बर रे की |

देखइत बुढ़ सन बसथि सभक मन
आहे लखइत पुरुष पुरन्दर रे की |

अपनें न अयल शिव घर नहि कौड़ी थिक
आहे गणपति अउरि पसारल रे की |

बसहा चढ़ल शिव फिरथि आनन्द वन
आहे घूमि-घूमि डमरू बजाबथि रे की |

भनइ विद्यापति सुनु गौरा पारवती
आहे इहो थिक त्रिभुवन नाथ रे की |

शिव हे भलि अनुगति फल भेला

शिव हे भलि अनुगति फल भेला |
एतए संगति अति
परतर कञोन गति
मनहि मनोरथ रहला ||

तोहें होएब परसन
पाओब अमूल धन
जनम खपलि तें आसे |
जमहु संकट पुनु
उपेखि हलह जनु
सेओलाहूँ बड़े परआसे ||

नयन स्रवर गेले
तनु अवसर भेले
जदि तोहें होयब परसने |
कि करब ततिखने
हअ गअ मनि धने
झाँखइते व्याकुल मने ||

हरि कमलासन
ईद चाँद गन
सबे परिहरि हमे देवा |
भगतबछल हर
सुनिअ महेसर
इ जानि कयल तुअ सेवा ||

विद्यापति भन
पुरह हमर मन
जनु होअ जम अवसादे |
हरह हमर दुःख
तथुहू तोहर सुख
सबे होअ तुअ परसादे ||

शिव हे

शिव हे

सेवए अएलाहूँ सुख लागी |
विषम नयन अनुखन बर आगी ||

बसहा परायल आगे |
पइसि पातळ रहल गए नागे ||

ससि उठि चलल अकासे |
गौरि चललि गिरिराजक पासे ||

उचित कहए नहीं जाइ |
उमट अराधब कॉउने उपाइ

विद्यापति कवी सेवा
देथु अभय वर शंकर देवा ||

शिव हो उतरब पार कओन विधि

शिव हो उतरब पार कओन विधि

लोढ़ब कुसुम, तोड़ब बेलपात
पूजब सदाशिव गौरि़क साथ
बसहा चढ़ल शिव फिरए मसान
भडिया जरठ वेदन नहि जान
जप टाप नहि कएलहु दान
बिति गेल तिनपन करइत आन
भनइ विद्यापति सुनह महेश
निरधन जानि मोर हरह कलेस |

सुनिऐन्हि हर बड सुन्दर

सुनिऐन्हि हर बड सुन्दर,
आगे, देखऐन्हि बिभूति भयंकर |
सुनिऐन्हि हर अओंतहि रथपर,
आगे, देखिऐन्हि बूढ़ बलद पर ||

सुनिऐन्हि पाटपटम्बर,
आगे, देखऐन्हि फटले बघम्बर |
सुनिऐन्हि गरा मोति माललय,
आगे देखऐन्हि रुद्रक हारलय ||

भनहि विद्यापति गऔल,
आगे गौरी उचित वर पाओल ||

सुनिय डमरू धुनी

सुनिय डमरू धुनी, शिव शिव पुनि पुनि,
आब एत करू बिसराम |

पूजा उपचार लिय, सत्वर गंगाके दिय,
कही देव हमरो प्रणाम|

करतीहि कृपा गंगा सकल कलुख भंगा,
आब जीब परसन भेल |

एतै औतीह सुरधुनी, अपन किन्ड़कर गुनी,
सब पातक दूर गेल |

थाकि गेलि जनी जाति, बेटा बेटी पोता नाती,
कामति कहार संग साथी |

मोर हेतु आउ एत, धन्यवाद लोक देत,
सभ जन हरषि नहाथी |

बहन कवि विद्यापति, दिअ देबि दिव्य गति,
पशुपतिपुर पहुचाय |

गौरि संग देख शिव, कि सुख पाओत जीव,
से आब कहल न जाय ||१||

गे माइ

हम नहि आज रहब एहि आँगन जों बुढ़ होयत जमाए | गे माइ |
एक तं बैरी भेल विधि-विधाता, दोसर धिआकेर बाप |

तेसर बैरी भेल नारद बाभन जे बुढ़ आनल जमाए | गे माइ |
पहिलुक बाजन डमरू तोड़ब, दोसरे तोड़ब रुण्डमाल |

बड़द हाँकि बरिआत बैलाएब, धिया लए जाएब पड़ाए | गे माइ |
धोती, लोटा, पतरा, पोथी सेहो सब लेबंहि छिनाए |

जों किछु बजता नारद बाभन दाढ़ी धए घिसिआएब | गे माइ |
भनहि विद्यापति सुनु हे मनाइनि दिढ़ करू अपन गेआन |

सुभ सुभ कए सिरी गौरि बिआहिअ गौरि-हर एक समान | गे माइ |

हम सौं रुसल महेशे

हम सौं रुसल महेशे |
गौरि विकल मन करथि उदेशे ||

पुछिय पंथुक जन तोही |
पथ देखल कंहू बुबटोही ||

अंगमे विभूति अनुपे |
कतेक कहब हुनि जोगिक रूपे ||

विद्यापति भन ताही |
गौरि हर लय भेलि बताही ||

हे मनाइन देखह जमाय

हे मनाइन देखह जमाय
सिवक माथ फुटल जटा
आगे माइ, ताहि उपर नाग घटा ||

जटा देल अकुसी लगाय
आगे माइ, ताहि उपर नाग घटा ||

झिकितहि सुरसरि गोल बहराय
वेदी देल लवा छिडिआय
आगे माइ, ताहि उपर नाग घटा ||

भूकल वासुकि बिछि बिछि खाय
बट्टा भरि घोरल कसाय
आगे माइ, ताहि उपर नाग घटा ||

उमत महादेव भसम लगाय
गौरि सहित वर कोबार जाय
आगे माइ, ताहि उपर नाग घटा ||
गे माइ................................

Aug 30, 2009

हर जनि बिसरब मो ममिता

हर जनि बिसरब मो ममिता
हर नर अधम परम पतिता
तुअ सन अधम उधार न दोसर
हम सन जग नहि पतिता

जम के द्वार जबाब कओन देब
जखन बुझात निजगुन कर बतिया
जब जम किंकर कोपि पठाएत
तखन के होत धरहरिया

भनहि विद्यापति सुकवि पुनितमति
संकर विपरीत बानी
असरन सरन चरन सिर नाओल
दया करू दिअ सुलपानी |

हे हर तोहें निरदय जनु होही

हे हर तोहें निरदय जनु होही |
लख अपराध उपेखि नडाबिअ के प्रतिपालत मोही ||

मन छल नृपति होयब माहिमण्डल करब कनक मनि दाने |

मनक मनोरथ मनहि मगन भेल आन करैत भेल आने ||

एहि भवसागर पार कतहु नहि कोन विधि उतरब पारे |

कुदिवस नाव डुबाबए चहइछ करम कुटिल करूआरे ||

ह्रदय वेदन हम कतेक कहब तोहि दुर कर मन अभिमाने |

कतेक आस पास तोहि अएलंहु विद्यापति कवि भाने ||

हे हर जानि भेल गुरु देव द्वार

हे हर जानि भेल गुरु देव द्वार
आब हम करब कोन परकार |

अशरण
शरण धयल हम तोहि
अबला जानि बिसरलह मोहि |

भाँग
खाय शिव सुतलाह भोर
तें अति दुरगति होइछ मोर |

बिनु
धन धरम कयल नहि जाय
ताहि करब हम कोन उपाय |

भनहि
विद्यापति सुनु शूलपानि
दिअओ अभयवर सहित भवानि |

|| ज़िन्दगी कहती है ज़िन्दगी
से के अगर साथ रहा ज़िन्दगी का
तो साथ रहेगी ज़िन्दगी के ||
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