मोर भंगिया भोला कोन राखल बिलमाए
मोर भंगिया भोला कोन राखल बिलमाए ||
गौरि विकलमन पुछ्थि पथिक सों हरक उदेश कहु पाए |
जीवननाथ मोर कतए गेल छथि तें नहि भवन सोहाए ||
जखन देखथि मुख फेरथि कतहु नहि तकितहि रहथि सदाए |
से जे प्राणपति कतए गेल छति एकसरि देलन्हि नड़ाए ||
वसथि तपोवन हरलन्हि मोर मन सिंगी नाद बजाय |
हुनि लए हम जे कठिन व्रत साधल पथ हेरि नयन झझाए ||
भनहि विद्यापति सुनिअ महेशवरि चित रहु धैरज लाए |
देववती पति करत कृतार्थ पुरत मनोरथ आए ||