आगे माइ
आगे माइ, सोने-रुपें छारथि आनक पुतकें गारा देथि मनिमय माल |
अपना पुत लय किछु नहि जूड़नि अनका लय जंजाल |
आगे माइ, भनइ विद्यापति सुनिअ गौरीदेवि दिढ़ करू अपुन गेआन |
इ हर थिक त्रिभुवनपति दानी जग भरि के नहि जान
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