प्रथमहि शंकर सासुर गेला
प्रथमहि शंकर सासुर गेला
बिनु परिचय उपहास पड़ला
पुछिओ न पुछ्लके बैसलाह जहाँ
निरधन आदर के कर कहाँ ||
हेमगिर मंडप कौतुक वसी
हेरि हँसल सबे बढ़ तपसी ||
से सुनी गौरि रहलि सिर नाए
के कहत माँ के तोहर जमाय ||
साँप शारीर काख बोकाने
प्रकृति औषध केदहु जाने ||
भनइ विद्यापति सहज कहू
आडम्बरे आदर हो सबतहू ||
0 comments:
Post a Comment