Sep 15, 2009

प्रथमहि शंकर सासुर गेला

प्रथमहि शंकर सासुर गेला
बिनु परिचय उपहास पड़ला
पुछिओ न पुछ्लके बैसलाह जहाँ
निरधन आदर के कर कहाँ ||
हेमगिर मंडप कौतुक वसी
हेरि हँसल सबे बढ़ तपसी ||
से सुनी गौरि रहलि सिर नाए
के कहत माँ के तोहर जमाय ||
साँप शारीर काख बोकाने
प्रकृति औषध केदहु जाने ||
भनइ विद्यापति सहज कहू
आडम्बरे आदर हो सबतहू ||

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|| ज़िन्दगी कहती है ज़िन्दगी
से के अगर साथ रहा ज़िन्दगी का
तो साथ रहेगी ज़िन्दगी के ||
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