पीसल भाँग रहल एहि गती
पीसल भाँग रहल एहि गती |
की लए मनाएब उमता जती ||
आन दिन निकहि छलाह मोर पती |
आइ बढाए देल कओन उदमती ||
आनक नीक अपन हो छती |
ठामें एक ठेसता पड़त विपती ||
भनहि विद्यापति सुनु हे सती |
ई थिक बाउर त्रिभुवनपति ||
पीसल भाँग रहल एहि गती |
की लए मनाएब उमता जती ||
आन दिन निकहि छलाह मोर पती |
आइ बढाए देल कओन उदमती ||
आनक नीक अपन हो छती |
ठामें एक ठेसता पड़त विपती ||
भनहि विद्यापति सुनु हे सती |
ई थिक बाउर त्रिभुवनपति ||
Posted by Maithil at 11:49 AM
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