पंचानन पुर मथन भयंकर
पंचानन पुर मथन भयंकर, शंकर नाम कओने धरिआ |
तिनी नयन हर एक हुताशन, न जान कओने कुल अवतरिआ ||
माय न बाप सांप संगे खेलय, मेलय भसम दिगन्त भरी |
मनमथ मारि नारि आलिंगए, उमत बुझाओव् कौने परी ||
पावनि गांग मथा जदि थोवहि, गोवहि काइ जटा विघनी |
संसय तोरि जे गोरि बुझावय, इथि अनुचित अनुचित अपनी ||
भनइ विद्यापति सुनह मदाइनि, कौने बुझाऔत जगत गुरु |
राजा शिवसिंह रूपनारयण सकल याचक-जान-कलपतरु ||
0 comments:
Post a Comment