पाहुन आएल भावनी
पाहुन आएल भावनी
बाघ छल बइसए दिअ आनी ||
बसह चढ़ल बुढ़ आबे
धुथुर गजाए भोजन हुनि भाबे ||
भसम विलेपित अंगे
जटा वसथि सिर सुरसिर गंगे |
हाड़माल फणीमाल सोभे
डंबरू बजाव हर जुवतिक लोभे ||
विद्यापति कवी भाने
ओ नहि बुढ़बा जगत-किसाने ||
पाहुन आएल भावनी
बाघ छल बइसए दिअ आनी ||
बसह चढ़ल बुढ़ आबे
धुथुर गजाए भोजन हुनि भाबे ||
भसम विलेपित अंगे
जटा वसथि सिर सुरसिर गंगे |
हाड़माल फणीमाल सोभे
डंबरू बजाव हर जुवतिक लोभे ||
विद्यापति कवी भाने
ओ नहि बुढ़बा जगत-किसाने ||
Posted by Maithil at 11:46 AM
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